Article 24
अघोर वचन -17"हम अपने जीवन में तरह तरह के स्वप्न देखते हैं । कोई मार रहा है । कोई काट रहा है । कोई मर रहा है । कोई जी रहा है । यह जो निशा है जिसमें हम स्वप्न देखते हैं, इसके कारण ऐसा होता है यह भी नहीं...
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अघोर वचन - 18"कहने को तो हम बहुत कुछ कह डालते हैं, सुनने के लिये हम लोगों का बहुत कुछ सुनते हैं, पढ़ने के लिये बहुत कुछ पढ़ लेते हैं मगर यह सब उसी छाया को पकड़ने सरीखे है जैसे आगे आगे छाया भागता जाय, हम...
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अघोर वचन -19"समाज में रहकर अमानी बने रहो । यह ध्यान रहे कि सम्मान, आदर और किसी भी प्रकार के प्रलोभन के पीछे अपने इस मुल्यवान जीवन का अधिकांश निकल न जाय । इसी को ध्यान भी कहते हैं ।"...
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अघोर वचन -20"अपने लिये जीविका का अधिक संग्रह न करना । समाज के जो लोग निस्सहाय, साधनविहीन हो गये हैं, उन्हें अपनी जीविका में से बाँटकर देना । इसी को समसमाधि, समान तद्रूपता कहते हैं ।"...
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अघोर वचन - 21"जिसने मान, बड़ाई और स्तुति को तिलाँजलि दे रखी है, उसे खाक लपेटने, अपने को तपाने या समाज सम्मान की आवश्यकता नहीं होती । वह तो जाति और कुल के लक्षणों, यहाँ तक की प्राँतियता, राष्ट्रीयता और...
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अघोर वचन - 22"मैं नहीं कहता हूँ कि तुम इतना ही समझकर स्थिर हो जाओ । वह पूरी समझ नहीं है । इससे और आगे बढ़ो । इससे आगे और कुछ है, उससे भी आगे बहुत कुछ है, जिन्हें तुम्हे जानना है, जानकर अपनाना है, अपनाकर...
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अघोर वचन - 23"सुधर्मा ! तुम्हें यह पूर्णतः जान लेना होगा और जान कर अपने आप में, उस अज्ञात के चरणों में, व्यवहारिक अन्वेषण करना होगा । व्यवहारिक न होने के कारण दर्शन या फिलासफी बिल्कुल अधूरे हैं । दर्शन...
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अघोर वचन - 24"यदि आप विवाहित हैं तो उस एक नारी ब्रह्मचारी के नियम का पालन करें । जब कोई आसक्ति नहीं, उस मातृय को आप जानने लगेंगे तो आप का मन वैसे ही सुगम हो जायेगा । आप जो भी कार्य करेंगे सफलता को...
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अघोर वचन - 25"हम अभ्यन्तर से अपने इस त्रिगुणात्मक स्थिति से अवगत हो जायें और इस पीठ में हम अपने आप को स्थापित कर लेते हैं तो इसी में वह गुरूपीठ है, इसी में वह शक्तिपीठ है और यही हमारी ही आत्मा, हम ही...
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अघोर वचन - 26"शुद्ध मन जिन कार्यों की अनुमति नहीं देता, उन्हें ऐसे कार्यों के लिये मत मनाओ, मत उकसाओ, अन्यथा वह बोझिल एवँ दुस्सह हो उठेगा । अनुचित कार्यों के लिये मन पर दबाव डालने से मस्तिष्क पर...
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अघोर वचन - 27"पाप के हटने ना हटने से, पुन्य के उदय होने न होने से जीव का उद्धार हो जाय सो समझ में नहीं आता । पूर्णतः मान्य नहीं होता । पूर्णतः मान तो तभी होता है कि उस अज्ञात के साथ वार्तालाप हो,...
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अघोर वचन - 28"वह पूर्ण विश्वास दे कि तुम्हें मैं अपनाया, और तुम अपना ही हमें भी मानो, और हम, जो तुम में है, उसे ही समझो । वही मेरी आत्मा, वह है । जो इस तरह करने के लिये मुझे बाध्य कर के इस विशेष अवस्था...
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अघोर वचन- 29"जब किसी काम को होना होता है तो उसका पहला एक लक्षण, दो लक्षण अपने सामने से गुजर जाता है । हम मार्क करें तो हम यह समझ सकते हैं कि अब उसका आगमन होने वाला है, और सचेत हो जाँय, और सचेत हो जाँय...
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अघोर वचन -30"देवता का आगमन.......पहले अपने में उसका आविर्भाव होता है । अपना मन खुद ही महसूस कर लेता है । हाँ ! यह ऐसा ही होगा, हो जायेगा । पहले ही महसूस कर लेता है । जब अपना मन महसूस नहीं करता है तब आप...
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अघोर वचन -31"जगत के किसी भी नाशवान पदार्थ, यहाँ तक कि पार्थिव शरीर तक से जिसको अनभिज्ञता हो जाय उसे ही सहज समाधि, स्वात्मा, अज्ञात और बोधमय चित्त की उपलब्धि होती है । बोधमय चित्त में फिर कोई, किसी का...
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अघोर वचन - 32"यदि कोई ऐसे संत मिलें जो थिर हों, भक्तिपूर्ण हों, अपने अभ्यन्तर की चेतना के प्रकाश के प्रति जागृत हों, तृप्त हों, जिनकी बुद्धि पर पोथी नहीं लदी हो, सरल हों सु - भाव में, ऐसे व्यक्ति का...
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अघोर वचन - 33"साधु के वेश में जो अपकृत्य करते हैं, देवी देवताओं के नाम पर धोखा देते हैं, जो अपनी जिव्हा पर नियँत्रण नहीं रखते हैं, अपकृत्य करके हाथ गँदे करते हैं, वे जिस बाजार में जाते हैं तौल दिये...
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अघोर वचन -34"हमारी बातें शायद आप ठीक से सुन नहीं पाते हैं या सुन पाते हैं तो समझ नहीं पाते हैं । समझ पाते हैं तो कर नहीं पाते हैं और कर भी पाते हैं तो शायद जिस ढ़ँग से होना चाहिये उस ढ़ँग को अपने ढ़ँग में...
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अघोर वचन -35"गलत कर्मों की तरफ प्रेरित करने वाले मित्र नहीं होने चाहिये । क्योंकि उससे हमारा स्वास्थ्य खराब होता है, मस्तिष्क क्षीण होता है और हम तरह तरह की व्याधियों को जन्म दे सकते हैं ।"...
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अघोर वचन -36"जहाँ नीति बरतनी है, अनुशासन बनाये रखना है वहाँ पर व्यवहार में साधुताई की आवश्यकता नहीं होती । साधुताई से काम नहीं चलेगा । वहाँ पर किसी के भी अनिष्ट की भावना का त्यागकर "हृदय प्रीति मुँह...
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अघोर वचन - 37"दैहिक प्रेम प्रेम नहीं है । वह तो मोह ममता है । वास्तविक प्रेम तो उस ममता को नष्ट कर देने में है । आत्मिक प्रेम ही वास्तविक प्रेम है । आत्मिक प्रेम का जो आचार्य है उसकी शरण में जाओ । वह...
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अघोर वचन -38"जिसे जीवित जागृत प्राणियों से प्रेम नहीं होता उसे मँदिर में बैठे पत्थर के देवता और मस्जिद के शून्य निराकार ईश्वर से प्रेम नहीं हो सकता । "...
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अघोर वचन -39"बहुत से ईर्ष्या, कलह, भय से आदमी भयभीत है । अपने बन्धु बान्धवों से भयभीत है, अपने बच्चों पत्नी से भयभीत है, अड़ोस पड़ोस से भयभीत है, अपने मिलने जुलनेवालों से भयभीत है । भय से आक्राँत हम...
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अघोर वचन -40"असत्य पुरूष उसे कहते हैं जो बिना पूछे दूसरे के अवगुण को बार बार दुहराता है, निन्दा करता है, अपने अवगुण को ढ़ाँकता है । वह बिल्कुल साथ करने के योग्य नहीं है, निन्दनीय विचारों से परिपूरित...
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अघोर वचन - 41"मस्तक को खाली कर, मन को हलका कर, शरीर को ढ़ीला कर, या एक क्षण के लिये चक्षु बन्द करें । और इसलिये चक्षु न बन्द करें कि चक्षु बन्द करके अपने आप को अन्धकार में डाल दें । इसलिये चक्षु बन्द...
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